भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड से निकाला जहरीला कचरा, सीलबंद कंटेनर से पहुंचेगा पीथमपुर
- Editor In Chief
- Jan 2
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एक अधिकारी ने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद 40 सालों से बंद पड़ी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में निपटान के लिए पड़े लगभग 377 टन खतरनाक कचरे को ट्रांसफर करने का काम शुरू हो गया है. कचरे को 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में भरकर भोपाल से 250 किमी दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ट्रांसफर किया जा रहा है. इसके लिए एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है.
भोपाल गैस त्रासदी के चालीस साल बाद से बंद पड़ी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में निपटान के लिए पड़े लगभग 377 टन खतरनाक कचरे को ट्रांसफर करने का काम बुधवार रात से शुरू हो गया है. जहरीले कचरे को 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में भरकर भोपाल से 250 किमी दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ट्रांसफर किया जा रहा है. इन 12 कंटेनर के साथ पुलिस बल, एंबुलेंस, डॉक्टर, फायर ब्रिगेड और क्विक रिस्पांस की टीम समेत कुल 25 गाड़ियों का काफिला है जो रात भर नॉन स्टॉप अपना सफर तय करेगा.
भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने कहा, 'अपशिष्ट ले जाने वाले 12 कंटेनर ट्रक रात 9 बजे के आसपास बिना रुके यात्रा पर निकले. वाहनों के लिए एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है, जिनके सात घंटे में धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र तक पहुंचने की उम्मीद है.
'100 लोगों ने 30 मिनट की शिफ्ट में किया काम
उन्होंने कहा कि कचरे को ट्रकों में पैक करने और लोड करने के लिए लगभग 100 लोगों ने रविवार से 30 मिनट की शिफ्ट में काम किया. उनकी स्वास्थ्य जांच की गई और उन्हें हर 30 मिनट में आराम दिया गया.उन्होंने बताया कि कचरे में 162 मीट्रिक टन मिट्टी, 92 मीट्रिक टन सीवन और नेफ्थाल के अवशेष, 54 मीट्रिक टन सेमी प्रोसैस्ड पेस्टिसाइड और 29 मीट्रिक टन रिएक्टर के अवशेष हैं. 10 टन रासायनिक कचरे को जलाने का ट्रायल 2015 में भी किया गया था.
HC ने लगाई फटकार
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी अधिकारी निष्क्रियता की स्थिति को देखते हुए 3 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद यूनियन कार्बाइड साइट को खाली नहीं करने के लिए अधिकारियों को फटकार लगाई और कचरे को ट्रांसफर करने के लिए चार हफ्ते की समय सीमा तय की.
हाईकोर्ट की पीठ ने सरकार को उसके निर्देश का पालन नहीं करने पर अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी थी. वहीं, 3 तारीख को सरकार को कचरे का निष्पादन शपथ पत्र कोर्ट में पेश करना है और 6 जनवरी को इस मामले में सरकार की पेशी भी है.
3 महीने में जल जाएगा कचरा
स्वतंत्र सिंह ने बुधवार सुबह पीटीआई-भाषा को बताया, 'अगर सब कुछ ठीक पाया गया तो कचरे को तीन महीने के भीतर जला दिया जाएगा. अन्यथा इसमें नौ महीने तक का समय लग सकता है.
सिंह ने कहा, शुरुआत में कुछ कचरे को पीथमपुर में कचरा निपटान इकाई में जला दिया जाएगा और अवशेष (राख) की जांच की जाएगी कि क्या कोई हानिकारक तत्व बचा है.
उन्होंने कहा कि कचरे से निकलने वाला धुआं विशेष चार-परत फिल्टर से गुजरेगा ताकि आसपास की हवा प्रदूषित न हो. एक बार जब यह पुष्टि हो जाती है कि जहरीले तत्वों का कोई निशान नहीं बचा है तो राख को दो परत वाली झिल्ली से ढक दिया जाएगा और यह सुनिश्चित करने के लिए दफना दिया जाएगा कि यह किसी भी तरह से मिट्टी और पानी के संपर्क में न आए.
सिंह ने कहा, 'केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की देखरेख में विशेषज्ञों की एक टीम इस प्रक्रिया को अंजाम देगी.
कार्बाइड के कचरे से प्रदूषित हुई मिट्टी
कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने दावा किया है कि 2015 में पीथमपुर में परीक्षण के आधार पर 10 टन यूनियन कार्बाइड कचरे को जला दिया गया था, जिसके बाद आसपास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्रोत प्रदूषित हो गए. लेकिन सिंह ने यह कहते हुए दावे को खारिज कर दिया कि पीथमपुर में कचरे का निपटान करने का निर्णय 2015 के परीक्षण की रिपोर्ट और सभी आपत्तियों की जांच के बाद ही लिया गया था. चिंता का कोई कारण नहीं होगा.
करीब 1.75 लाख की आबादी वाले शहर में यूनियन कार्बाइड कचरे के निपटान के विरोध में रविवार को बड़ी संख्या में लोगों ने पीथमपुर में विरोध मार्च निकाला था.
1984 में हुआ था हादसा
आपको बता दें कि 2-3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को यूनियन कार्बाइड कीटनाशक कारखाने से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ, जिससे कम से कम 5,479 लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग गंभीर और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त हो गए. इसे दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है.